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कविता

जय कन्हैया लाल की

प्रदीप शुक्ल


जय हो महँगाई की
ठुमक ठुमक चाल की
जय कन्हैया लाल की

नदी गई सूख
शेषनाग मुँह छुपाएँ
किशन गेंद खेलने को
घर से न जाएँ
बह रहा पसीना
है गर्मी कमाल की
जय कन्हैया लाल की

आधी रात पैदा हुए
कान्हा कुनमुनाएँ
वासुदेव क्लिनिक का
गेट खटखटाएँ
शाम से ही गायब है
नर्स अस्पताल की
जय कन्हैया लाल की

नाश्ते में मक्खन की
बात नहीं करना
यूरिया से दूध अब
बनाए रामचरना
बची नहीं एको अब
गईय्या नंदलाल की
जय कन्हैया लाल की।

 


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